Monday, July 20, 2009

My first shot at Hindi poetry.

वोह ख्याल उस रात मेरे करीब आई रे|

साँसें मेरी भयभीत सी,
आँखें मेरी हारी हारी|
जीने का एक बहाना ढूंडा,
सिर्फ मौत मिली बारी बारी|

अल्लाह को पुछा, बता न सका|
मेरे बदन में जलती आग को वोह बुझा न सका|
अल्लाह ने ओढा चादर तो और प्यास मिली,
औरों की कब्रों मैं मुझे अपनी ही परछाई मिली|

मैं जीना चाहता था, मैं जीना जानता था|
मेरी आँखों में भगवान् का बसेरा था|
लेकिन वोह सब मुझसे उस रात चली गयी रे,
जब वोह ख्याल उस रात मेरे करीब आई रे|